नोटबंदी मगर जल्दी में
#demonetisation_Indian_govtजफर इकबाल
नोट बनदी के लाभ के संबंध में सत्ताधारी लोग जिस तरह के लाभ िगनवारहे हैं और सत्ताधारी पार्टी के समर्थक जिस तरह सरकारी निर्णय का गुन गा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत ठीक इसके विपरीत है जिसके संबंध में हमें बहुत ही गंभीरता के साथ सोचना चाहिए नहीं तो हम ऐसे दलदल में फंस जाएंगे जिससे निकलना हम भारतीयों के लिए बहुत मुश्किल होगा। नोट बनदी के संबंध में यह बात कही जा रही है कि इससे काला धन रखने वालों से निपटने में आसानी होगी। लेकिन जिस तरह की खबरें आ रही हैं उससे लगता है कि काला धन रखने वाले तो पकड़ में आने से रहे बल्कि काला धन सफेद करने में पूरी लगन से लगे हुए हैं यह अलग बात है जिनके पास काला धन दस करोड़ रुपये रहा होगा वह घट कर छह करोड़ पर आ गया है। लेकिन पांच दस साल में फिर वही स्थिति हो जाएगी जिस तरह पहले थी। लेकिन नोट बनदी में सबसे जयादह कोई परिशान हो रहा है वह है आम आदमी जिसका काला धन से कोई लेना देना नहीं है। बल्कि वह गरीब जनता जो दो वक्त की रोटी ब मुश्किल जटापाती हे.छोटे छोटे कारखाने जो कई बंद हो चुके हैं और बाकी जो बचे हैं वे बंद होने के कगार पर पहुंच चुके हैं। देश में एक तरह से अराजकता फैल चुकी है। रोजाना बैंकों में लाइन लगकर अपने पैसे दो दो हजार रुपये निकालने पड़ रहे हैं। यह स्थिति बहुत ही दर्दनाक है।
देश को आधुनिक शैली पर आधारित होना चाहिए बल्कि यूरोप और आसपास के राज्यों की खुबिये को अपने में सिमोना चाहिए। यह तो बहुत ही अच्छी बात है लेकिन सबसे पहले हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि क्या यहां की जनता पेट भरकर खाना खापाती है? क्या यहाँ स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था दुरुस्त हो चुके हैं? लेकिन मामला ठीक इसके विपरीत है। भारत में शिक्षा और स्वास्थ्य प्रणाली आधिकारिक तौर पर है ही नहीं। क्या भारत के हर शहर और ब्लॉक में सरकारी और मुफ्त में अस्पताल स्थापित हो चुके हैं। जगह जगह मेडिकल कॉलेज हैं। क्या भारत के हर शहर और पंचायत में स्कूल और कॉलेज हैं जो अचछी तरह काम कर रहे हैं? यह बात सरकारी इंफराअसटरकचर के संबंध में कह रहा हूँ। सरकार की जिम्मेदारी है कि यहां की जनता स्वस्थ हो यहाँ की जनता शिक्षित हो और इस देश की जनता पेट भर खाना खासकते हूँ। वह इसलिए कि इसी जनता के बीच से हमें डॉक्टर, वैज्ञानिक, इंजीनियर, विचारक, सैनिक और राजनेता आते हैं। जब हमारा समाज स्वस्थ, शिक्षित और पेट भरी जनता होगी तब ही कोई राष्ट्र अच्छी तरह विकास कर सकता है। क्या स्वास्थ्य के बिना जनता, अज्ञान से लथपथ लोगों और खाली पेट जनता कोई ढंग से कोई निर्णय ले सकती है। कदापि नहीं? इसलिए नोट बनदी से पहले हमें पहले तीन काम करने चाहिए थे। अभी भी हमारे पास समय है पहले हम तीन काम करलें तो इस देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता।
पहले इस भूखी जनता के संबंध में सलाह देना चाहता हूं कि इस देश में अनाजों में से एक अनाज गेहूं जो आटे के रूप में हो पांच रुपये किलो से अधिक नहीं होना चाहिए जो हर राशन की दुकान में मौजूद हो जहां से हरकोई इसी रेट पर खरीद सके इसमें किसी तरह का कोई भेदभाव न हो, जो सभी के लिए हो और एक सब्जी जिस में आलू का चयन करता हूँ जो स्थायी सब्जी है जो खराब नहीं होती इसकी कीमत दो रुपये होनी चाहिए। बस अनाज में केवल आटा और आलू को भारत सरकार 80 प्रतिशत के हिसाब से दुकानदारों को सब्सिडी में दे जिससे भारत की जनता किसी भी सुरत में भरपेट खाना खासके, भारत का कोई नागरिक भूखा न रहे। यह मनुष्य का मौलिक अधिकार है। अब स्वास्थ्य और शिक्षा की तरफ आता हूँ कि भारत सरकार पंचवर्षीय योजना बनाये जिसमें इन पांच वर्षों में सरकार का एक ही लक्ष्य होगा कि बड़े शैक्षिक संस्थान स्थापित करने और बड़े अस्पताल बनाने हैं। हर गांव और हर शहर में हमें शिक्षा संस्थान और जगह जगह अस्पताल बनाने हैं। देखिए जब लोग स्वस्थ और पढ़े लिखे होगें वह राष्ट्र कैसे आगे बढ़ता है।
फोन: 9958361526
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