Sunday, 7 August 2016

कानून की जीत हुई लोकतंत्र हार गई

कानून की जीत हुई लोकतंत्र हार गई

#Democracy_Delhi_Governor

5 अगस्त 2016 को दिल्ली हाईकोर्ट से यह फैसला आया कि दिल्ली का बास ल्फ़टननट राज्यपाल है। मेरा मकसद दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का अपमान करना नहीं है, न कोर्ट के फैसले को खारिज कर रहा हुं। दिल्ली हाईकोर्ट ने जो फैसला सुनाया वह संविधान के तहत था। अब रहा कि संविधान को कौन लोग बनाते हैं। संविधान संसद बनाती है। भारतीय संविधान कोई सार्वभौमिक संविधान तो नहीं है जिसमें कोई संशोधन नहीं हो सके। भारतीय संविधान को बनाने वाले व्यक्ति थे और इसमें समय-समय पर संशोधन भी होती रही है और नए नियम भी बनते रहे हैं।
मेरा मकसद है कि 5 अगस्त  2016 को दिल्ली उच्च न्यायालय का जो फैसला आया इससे लोकतंत्र का क्या नुकसान हुआ? इस फैसले से जनता को कितनी परेशानी हुई और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी। दिल्ली में आम आदमी पार्टी सत्ता में है लेकिन अब दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले के बाद उसकी स्थिति क्या रह गई है? आम आदमी पार्टी एक नई पार्टी है जो अन्ना हजारे आंदोलन के गर्भ से निकली है। कोई नई पार्टी बनती है तो उसके साथ बहुत सारे वादे और उमंगें होती हैं, जो वे करनाचाहती हैं। मैं दिल्ली में 1995 से हूँ, मैं ने साहब सिंह वर्मा (भाजपा) और शीलादिशत की पंद्रह वर्षीय शासनकाल को देखा है और अब आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार है। शीलादिशत सरकार का पहला दौर दिल्ली में था और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की कयादत वाली एनडीए सरकार सत्ता में थी। लेकिन तत्कालीन ल्फ़टननट राज्यपाल और कांग्रेस सरकार के बीच जाहिर तौर पर कोई नोक झोंक नहीं हुई। शीला दीक्षित बिना किसी परेशानी के सरकार चलाती रहीं। ल्फ़टननट राज्यपाल ने कभी यह दावा नहीं किया है दिल्ली का बॉस में हूं और शीला दीक्षित मालिक नहीं है। लेकिन पिछले साल जब आम आदमी पार्टी दिल्ली में लैंड स्लाइड वोट के जरिए सत्ता में आई। आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने अपनी इच्छा की पूर्ति और जनता की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सत्ता में लाया। जनता ने भारी मतदान के माध्यम से आम आदमी पार्टी को दिल्ली में सरकार के लिए चना, लिकन संविधान कहता है कि दिल्ली के मूल मालिक ल्फ़टननट राज्यपाल है। दिल्ली सरकार जो एक जनता की चुनी हुई सरकार है उसकी कोई हैसियत नहीं है। वह कोई फैसला नहीं कर सकती। विधानसभा कोई सामूहिक निर्णय लेगी उसे ल्फ़टननट राज्यपाल चाहे स्वीकार कर सकता है या अस्वीकार कर सकता है। वह ल्फ़टननट राज्यपाल के विवेक पर है। क्या हमें और आप और कांग्रेस और भाजपा और अन्य पार्टी को ऐसा नहीं लगता कि जनता ने जिस को चुना है वह निर्णय नहीं ले सके क्या यह जनता का अपमान नहीं है? जनता के फैसले का अपमान नहीं है? दिल्ली की जनता ने ल्फ़टननट राज्यपाल को नहीं चुना है बल्कि अरविंद केजरीवाल को चुना है। क्या केंद्रीय सरकार और विपक्ष इस कानून को क्यों नहीं बदल दे जिससे जनता के दुखों का उपाय हो सके। अब जनता किधर जाए।
फोन: 9958361526

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